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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महीने अंतिम रविवार से पहले ही मन की बात कार्यक्रम के तहत देशवासियों के साथ संवाद किया है। मन की बात कार्यक्रम की 102वीं कड़ी में पीएम मोदी ने अपने मन की बात कही और देशवासियों को बताया कि इस बार एक सप्ताह पहले ही उन्होंने कार्यक्रम क्यों किया है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री हर महीने के आखिरी रविवार को ‘मन की बात’ के जरिये अपने विचार साझा करते हैं। वह 21 से 24 जून तक अमेरिका के दौरे पर रहेंगे। इसलिए इस दफा ‘मन की बात’ का प्रसारण एक सप्ताह पहले किया गया। इसका उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा, ‘‘आप सब जानते ही हैं, अगले हफ्ते मैं अमेरिका में रहूंगा और वहां बहुत सारी भाग-दौड़ भी रहेगी। इसलिए मैंने सोचा वहां जाने से पहले आपसे बात कर लूं।
इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत ने 2025 तक टीबी को समाप्त करने का संकल्प लिया है। उन्होंने कहा कि लक्ष्य निश्चित रूप से बहुत बड़ा है। एक समय था जब टी.बी. टी. बी. के बारे में पता चलने पर घर वाले दूर हो जाते थे, लेकिन आज का समय है, जब टी. बी. मरीज को परिवार का सदस्य बनाकर मदद की जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चक्रवात बिपारजॉय से गुजरात के कच्छ जिले में हुई तबाही का उल्लेख करते हुए रविवार को कहा कि वहां के लोगों ने जिस मजबूती से उसका मुकाबला किया, वह अभूतपूर्व है। उन्होंने उम्मीद जताई कि कच्छ के लोग जल्द ही इस तबाही से उबर जाएंगे। आकाशवाणी के मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 102वीं कड़ी में अपने विचार साझा करते हुए मोदी ने प्रकृति के संरक्षण को प्राकृतिक आपदाओं से मुकाबला करने का एक बड़ा तरीका बताया। उन्होंने कहा, ‘‘चक्रवात बिपारजॉय ने कच्छ में कितना कुछ तहस-नहस कर दिया, लेकिन कच्छ के लोगों ने जिस हिम्मत और तैयारी के साथ इतने खतरनाक चक्रवात का मुकाबला किया, वह भी उतना ही अभूतपूर्व है। आत्मविश्वास से भरे कच्छ के लोग चक्रवात बिपारजॉय से हुई तबाही से जल्द उबर जाएंगे।’’ मोदी ने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं पर किसी का जोर नहीं होता, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भारत ने आपदा प्रबंधन की जो ताकत विकसित की है, वह आज एक उदाहरण बन रही है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि बड़े से बड़ा लक्ष्य हो, कठिन से कठिन चुनौती हो, भारत के लोगों का सामूहिक बल हर चुनौती का हल निकाल देता है। उन्होंने कहा, “आजकल मॉनसून के समय में इस दिशा में हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। इसीलिए आज देश ‘कैच द रेन’ जैसे अभियानों के जरिये सामूहिक प्रयास कर रहा है।’’